Hindi memoir: An excerpt from ‘Ve Nayaab Aurtein’, by Mridula Garg
The bilingual writer writes about growing up in the company of formidable women.

मृदुला गर्ग की आत्मकथा वे नायाब औरतें का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
पिताजी बेटियों पर ख़ूब प्यार लुटाते और उनमें फ़ेवरिट थी, नम्बर चार, रेणु । पढ़ने-लिखने में औसत से कम पर बहसबाज़ी में अव्वल और ज़िद में बेमिसाल । पिताजी उसे हरदम अपने संरक्षण में रखते। हमें भी हिदायत देते कि ख़याल रखें उसका दिल न दुखे ।
उससे तीन साल और सबसे छोटी बहन अचला थी । क्लास में गणित के सिवा हर विषय में अव्वल रहती पर फ़ितरत में चुप्पी शामिल थी। स्वर्णा आया के अचानक चले जाने का उस पर भी बुरा असर पड़ा। उसकी सेहत काफ़ी नाज़ुक थी। बुख़ार आता रहता। स्कूल बस के लिए सुबह जल्दी उठ भागना पड़ता तो कुछ खा न पाती। जी मिचलाने की शिक़ायत कर, ज़्यादातर बिना खाये निकल जाती। मेरे सिवा उसकी तरफ़ ध्यान देने की फ़ुर्सत या रुचि किसी को न थी । पिताजी ज़रूर परेशान होते और कई बार रिसेज़ में, नाश्ता ले स्कूल पहुँच जाते । रेणु और अचला हमारी तरह लेडी इर्विन स्कूल में नहीं, कॉनवेंट ऑफ़ जीसस एंड मेरी में पढ़ती थीं। मंजुल के इसरार पर, सहेलियों के स्टेटस सिम्बल्स पर उसकी अटूट आस्था थी। उन्हें कहते सुना कि बड़े लोगों के बच्चे कॉनवेंट में पढ़ते हैं तो...